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वर्णांधता (कलर ब्लाइंडनेस): प्रकार, कारण, लक्षण, उपचार

कलर ब्लाइंडनेस चार्ट

वर्णांधता (कलर ब्लाइंडनेस) किसी प्रकार की अंधता नहीं है बल्कि यह तो रंगों को देखने के तरीके में एक प्रकार की कमी है।

यदि आप वर्णांध हैं, तो आपको कुछ रंगों जैसे नीले और पीले, या लाल और हरे में भेद करने में कठिनाई होती है।

वर्णांधता (जिसे रंग दृष्टि न्यूनता कहना अधिक सही होगा) एक वंशानुगत स्थिति है जो महिलाओं की तुलना में पुरुषों को अधिक प्रभावित करती है। प्रिवेंट ब्लाइंडनेस (अंधता रोकें) के अनुसार, लगभग 8 प्रतिशत पुरुषों और 1 प्रतिशत से भी कम महिलाओं में रंग दृष्टि से संबंधित समस्याएं होती हैं।

लाल-हरित रंग न्यूनता वर्णांधता का सबसे आम प्रकार है।

इससे अधिक दुर्लभ है विरासत में मिलने वाली एक अन्य विलक्षणता जिसके कारण व्यक्ति की नीली व पीली रंगतें देखने की योग्यता घट जाती है। यह नील-पीत रंग न्यूनता आमतौर पर पुरुषों और महिलाओं को बराबर संख्या में प्रभावित करती है।

वर्णांधता (कलर ब्लाइंडनेस): संकेत और लक्षण

क्या आपको यह बताने में कठिनाई होती है कि रंग नीले और पीले हैं, या फिर लाल और हरे? क्या कभी-कभी दूसरे लोग आपको बताते हैं कि आप किसी रंग को जो समझ रहे हैं वह उससे अलग है?

यदि ऐसा है, तो ये इस बात के प्रारंभिक संकेत हैं कि आप किसी रंग दृष्टि न्यूनता से ग्रस्त हैं।

लोकप्रिय धारणा के विपरीत, किसी वर्णांध व्यक्ति को दुनिया केवल ग्रे (धूसर) की शेड्स में दिखना बेहद दुर्लभ है।

"वर्णांध" माने जाने वाले अधिकतर लोग रंग देख सकते हैं, पर उन्हें कुछ रंग धुले-धुले से दिखते हैं और वे, उनमें जो रंग दृष्टि न्यूनता है उसके प्रकार के आधार पर, उन्हें अन्य रंग मान बैठने की ग़लती कर जाते हैं।

[रंग न्यूनता से ग्रस्त व्यक्ति को क्या दिखता होगा इसके और उदाहरण देखें।]

यदि आप रंगों की पूरी रेंज को सामान्यतः देख पाते हैं और ऐसे में आपमें रंग दृष्टि से जुड़ी समस्याएं विकसित हो जाती हैं, तो आपको निश्चय ही किसी नेत्र देखभाल पेशेवर को दिखाना चाहिए। रंग दृष्टि की अचानक या क्रमिक हानि विभिन्न छिपी हुई स्वास्थ्य समस्याओं का संकेत हो सकती है, जैसे मोतियाबिंद.

वर्णांधता परीक्षण से यह पता लगाने में मदद मिल सकती है कि आपमें किस प्रकार की रंग न्यूनता है।

वर्णांधता क्यों होती है?

सामान्यतः, रेटिना में मौजूद प्रकाश-संवेदी कोशिकाएं अलग-अलग तरंगदैर्घ्य वाले प्रकाश पर प्रतिक्रिया देती हैं जिससे हम विभिन्न रंग देख पाते हैं, पर जब ये कोशिकाएं अपने इस कार्य में विफल हो जाती हैं तो वर्णांधता की समस्या उत्पन्न होती है।

रेटिना में मौजूद प्रकाशग्राहियों (फोटोरिसेप्टर्स) को शलाका (रॉड) व शंकु (कोन) कहा जाता है। शलाका कोशिकाएं अधिक संख्या में होती हैं (मानव रेटिना में लगभग 10 करोड़ शलाकाएं होती हैं), और वे प्रकाश के प्रति अधिक संवेदी होती हैं, पर वे रंगों की पहचान नहीं कर सकती हैं।

मानव रेटिना में 60 से 70 लाख शंकु कोशिकाएं होती हैं जो रंग देखना संभव बनाती हैं, और ये प्रकाशग्राही कोशिकाएं रेटिना के मध्य भाग में एकत्र रहती हैं जिसे मैकुला या पीत बिंदु कहते हैं।

मैकुला के केंद्र को फ़ोविया (गर्तिका) कहते हैं और रेटिना के इस नन्हे से (0.3 मिमी व्यास वाले) स्थान में शंकुओं की सर्वाधिक संख्या होती है तथा यही स्थान हमारी सबसे तीक्ष्ण रंग दृष्टि के लिए उत्तरदायी होता है।

वंशानुगत वर्णांधताएं प्रायः कुछ प्रकार की शंकु कोशिकाओं की कमी या उनकी पूर्ण अनुपस्थिति से संबंधित होती हैं।

आनुवंशिक ढांचे में अंतरों के साथ-साथ, रंग दृष्टि के दोषों या हानि के कुछ अन्य कारण भी होते हैं, जैसे:

  • पार्किन्सन रोग (PD)। चूंकि पार्किन्सन रोग एक तंत्रिकीय विकार है, अतः इसमें संभव है कि रेटिना में जहां दृष्टि संसाधन होता है वहां की प्रकाश-संवेदी तंत्रिका कोशिकाएं क्षतिग्रस्त हो जाएं और ठीक से कार्य न कर पाएं।

  • मोतियाबिंद। मोतियाबिंद में आंख के प्राकृतिक लेंस में धुंधलापन आ जाता है जो रंग दृष्टि को "फीका" करके उसकी उज्ज्वलता घटा सकता है। भाग्य से, मोतियाबिंद की सर्जरी द्वारा धुंधले प्राकृतिक लेंस को हटा कर उसके स्थान पर कृत्रिम इंट्राऑक्युलर लेंस लगाया जा सकता है जिससे उज्ज्वल रंग दृष्टि वापस पाई जा सकती है।.

  • कुछ दवाएं। उदाहरण के लिए, टियागेबाइन (Tiagabine) नामक एक दौरा-रोधी दवा के मामले में ऐसा देखा गया है कि इस दवा का सेवन करने वाले लगभग 41 प्रतिशत रोगियों में रंग दृष्टि घट जाती है, हालांकि ये प्रभाव स्थायी नहीं दिखाई पड़ते हैं।

  • लेबर्स हरेडिटरी ऑप्टिक न्यूरोपैथी (LHON)। इस प्रकार की वंशानुगत ऑप्टिक न्यूरोपैथी (प्रकाशिक तंत्रिकाविकृति) से इस रोग के वाहक भी प्रभावित हो सकते हैं जिनमें अन्य लक्षण तो नहीं होते पर कुछ हद तक वर्णांधता अवश्य होती है। इस स्थिति में लाल-हरित रंग दृष्टि से संबंधित दोष मुख्य रूप से देखने को मिलते हैं।

  • कॉलमेन्स सिंड्रोम। इस वंशानुगत स्थिति में पीयूष ग्रंथि विफल हो जाती है, जिसके कारण लिंग-संबंधी विकास, जैसे यौनांगों का विकास, अधूरा या असामान्य होता है। वर्णांधता इस स्थिति का एक लक्षण हो सकती है।

आयु बढ़ने की प्रक्रियाओं से रेटिना की कोशिकाओं को नुकसान पहुंचने पर भी वर्णांधता हो सकती है। मस्तिष्क के जिन स्थानों में दृष्टि संसाधन होता है उन्हें चोट लगने या क्षति पहुंचने पर भी रंग दृष्टि से संबंधित न्यूनताएं उत्पन्न हो सकती हैं।

वर्णांधता का उपचार

वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं के अनुसार, जीन चिकित्सा ने बंदरों में वर्णांधता को ठीक करने में सफलता पाई है।

हालांकि पशुओं में देखे गए ये परिणाम आशाजनक हैं, पर मनुष्यों में जीन चिकित्सा पर तब तक विचार नहीं किया जाएगा जब तक उपचार सुरक्षित सिद्ध न हो जाएं।

तब तक, वर्णांधता का कोई उपचार नहीं है। पर इस रंगोन्मुख दुनिया में इस कमी का सामना करने की कुछ युक्तियां आपको बेहतर ढंग से कार्य करने में मदद कर सकती हैं।

अधिकांश लोग बिना किसी बड़ी परेशानी के रंग दृष्टि संबंधी न्यूनताओं के साथ ढल जाते हैं। पर कुछ पेशे, जैसे ग्राफिक डिज़ाइन और ऐसे व्यवसाय जिनमें अलग-अलग रंग के बिजली के तारों से वास्ता पड़ता है, रंगों की सटीक समझ पर निर्भर करते हैं।

यदि आपको अपने जीवन में शुरू में ही पता चल जाए कि आप वर्णांध हैं, तो आप कोई ऐसा करियर चुन सकते हैं जिसमें रंगों की सटीक समझ की ज़रूरत ही न हो।

रंग दृष्टि संबंधी न्यूनता की शुरू में ही पहचान हो जाने से स्कूली वर्षों के दौरान चीज़ों को सीखने-समझने से संबंधित समस्याओं की भी रोकथाम की जा सकती है, विशेष रूप से इसलिए भी क्योंकि कई शिक्षण सामग्रियां काफ़ी हद तक रंगों की समझ पर निर्भर करती हैं।

यदि आपके बच्चे में कोई रंग संबंधी न्यूनता है, तो उसके शिक्षकों से इस बारे में बात ज़रूर करें, ताकि वे अपने पाठों और प्रस्तुतियों की तदुनसार योजना बना सकें।

वर्णांधों के लिए लेंस

कुछ लोग रंगों की समझ को बेहतर बनाने के लिए फ़िल्टर कहलाने वाले विशेष लेंसों का उपयोग करते हैं जो कॉन्टैक्ट लेंस या चश्मों के लेंस, दोनों रूपों में उपलब्ध हैं।

इनका एक उदाहरण हैं एनक्रोमा (Enchroma) द्वारा बनाए गए वर्णांध चश्मे। कंपनी का कहना है कि एनक्रोमा (Enchroma) के वर्णांध चश्मों में लगे हल्की रंगत वाले लेंसों में पेटेंट की हुई लाइट-फ़िल्टरिंग टेक्नॉलजी का उपयोग हुआ है जो वर्णांधता के सामान्य रूपों से ग्रस्त लोगों को प्रकाश का वह विस्तृत स्पेक्ट्रम देखने की योग्यता देती है जिसका महत्व हम में से अधिकांश लोग जानते ही नहीं हैं।

यदि आप रंग दृष्टि की किसी न्यूनता से ग्रस्त हैं, तो अपने पास नेत्र देखभाल पेशेवर ढूंढें और उससे मिल कर पूछें कि क्या वर्णांध चश्मे आपके लिए एक अच्छा विकल्प हैं।

आप कुछ रंगों में भेद न कर पाने की अपनी अयोग्यता के साथ जीने के कुछ तरीके भी सीख सकते हैं। उदाहरण के लिए, रंगों की अनबन से बचने के लिए आप अपने कपड़ों को व्यवस्थित करके या लेबल लगा कर रख सकते हैं। (सामान्य रंग दृष्टि वाले मित्रों या परिजनों से इस कार्य में मदद करने को कहें।)

साथ ही, कुछ रंगीन वस्तुओं को उनके रंग की बजाय उनके क्रम से पहचानना भी सीखें। उदाहरण के लिए, ट्रैफ़िक सिग्नलों में कौनसा रंग कहां होता है यह याद कर लें।

साथ ही, Android और Apple डिवाइसेज़ के लिए ऐसे कई डाउनलोड किए जा सकने वाले एप्स बनाए जा चुके हैं जो रंगों की पहचान में मदद करते हैं।

किसी नेत्र देखभाल पेशेवर से अतिरिक्त सहायता और मार्गदर्शन के लिए मिलें यदि आपको रंगों में भेद करने में कठिनाई होती है या यदि आपको संदेह है कि आपका बच्चा वर्णांध हो सकता है।

क्या लाल-हरित वर्णांधता वंशानुगत होती है?

लाल-हरित वर्णांधता, वंशानुगत रंग दृष्टि न्यूनता का सबसे आम प्रकार है। यह एक काफ़ी हद तक आम, X-लिंक्ड, अप्रभावी जीन के कारण होती है।

माताओं में आनुवंशिक पदार्थ से युक्त गुणसूत्रों की X-X जोड़ी होती है, और पिताओं में गुणसूत्रों की X-Y जोड़ी होती है। माता और पिता, दोनों से ही वे गुणसूत्र मिलते हैं जिससे उनके शिशु का लिंग निर्धारित होता है।

जब माता या पिता का एक X गुणसूत्र, पिता या माता के दूसरे X गुणसूत्र से जोड़ी बनाता है, तो पुत्री का जन्म होता है। और जब माता का X गुणसूत्र, पिता के Y गुणसूत्र से जोड़ी बनाता है, तो पुत्र का जन्म होता है।

यदि आप किसी X-लिंक्ड अप्रभावी जीन के कारण होने वाली लाल-हरित वर्णांधता से ग्रस्त हैं, तो इसका यह अर्थ है कि आपकी माता इस जीन की वाहक हैं या उनमें खुद में यह रंग न्यूनता है।

लाल-हरित वर्णांधता के इस वंशानुगत रूप से ग्रस्त पिताओं से यह X-लिंक्ड जीन उनकी पुत्रियों को तो मिलती है पर पुत्रों को नहीं, क्योंकि पुत्र को अपने पिता से X-लिंक्ड आनुवंशिक पदार्थ मिल ही नहीं सकता है।

अपने पिता से रंग-न्यून जीन विरासत में पाने वाली पुत्री इस जीन की वाहक होती है, पर वह वर्णांध नहीं होती है — तब तक नहीं जब तक कि उसकी माता भी ऐसी ही एक जीन की वाहक न हो, और उसे अपने माता व पिता दोनों से एक-एक रंग-न्यून जीन न मिले। यदि पुत्री को अपने पिता व माता दोनों से ही एक-एक X-लिंक्ड रंग-न्यून जीन मिलती है, तो वह वर्णांध होगी।

जब किसी माता से उसके पुत्र को यह X-लिंक्ड रंग-न्यून जीन मिलती है, तो उसे रंग दृष्टि न्यूनता विरासत में मिलती है और उसे लाल व हरे रंगों में भेद करने में परेशानी होती है।

पुनः बता दें कि पुत्री इस जीन की वाहक तो हो सकती है, पर वह वर्णांधता के इस रूप से केवल तब ग्रस्त होगी जब उसे उसके पिता और उसकी माता, दोनों से ही यह X-लिंक्ड जीन मिले। यही कारण है कि महिलाओं की तुलना में कहीं अधिक पुरुष वर्णांध होते हैं।

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