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भूरी आंखें: आंखें भूरे रंग की क्यों होती हैं?

हेज़ल आई कलर

भूरी आंखें थोड़ी रहस्यमयी मानी जाती हैं।

जिन्हें नहीं पता उन्हें बता दें कि लोग आंखों के इस सुंदर रंग को कई अलग-अलग तरीके से बयां करते हैं। कुछ इसे हेज़लनट या अखरोट सा बताते हैं, तो कुछ इसे सुनहरा या कत्थई-हरा बताते हैं।

भूरी आंखों का वर्णन इतना कठिन होने के पीछे एक कारण यह भी है कि आपने क्या पहना है और आप किस तरह के प्रकाश में हैं इस पर निर्भर करते हुए यह रंगत बदलती रहती है।

साथ ही, हालांकि भूरी आंखों में हरी, कहरुवा (कत्थई-पीली), यहां तक कि नीली रंगत भी होती है, पर मानव नेत्र में इस रंग के पिगमेंट होते ही नहीं हैं।

तो यह चकित करने वाला रंग आता कहां से है?

आंखों का रंग कैसे तय होता है?

हम में से अधिकतर को स्कूल में यह पढ़ाया गया था कि हमें हमारी आंखों का रंग हमारे माता-पिता से मिलता है, और यह कि आंखों का कत्थई रंग प्रभावी होता है और नीला अप्रभावी। अतः यदि माता व पिता दोनों की नीली आंखें हैं तो उनकी संतान की आंखें कत्थई नहीं हो सकतीं क्योंकि माता या पिता में से किसी के भी पास कत्थई आंखों वाली प्रभावी जीन नहीं होती है।

पर, कहानी इससे कहीं अधिक पेचीदा है।

हालिया शोध से पता चला है कि आंखों के रंग को प्रभावित करने वाले जीन एक या दो नहीं बल्कि 16 तक हो सकते हैं, यानी आंखों के रंग का पूर्वानुमान लगाना कहीं अधिक कठिन है।

इन कई सारी जीन के परस्पर व्यवहार और अभिव्यक्ति में अंतरों के कारण, माता या पिता की आंखों के रंग के आधार पर उनकी संतान की आंखों का रंग निश्चित तौर पर क्या होगा यह बताना कठिन होता है। उदाहरण के लिए, अब हम यह जानते हैं कि नीली आंखों वाले माता-पिता की संतान की आंखें कत्थई होना संभव है — आंखों के रंग की वंशानुगतता का पुराना मॉडल इस बात को असंभव मानेगा।

साथ ही, जीवन के शुरुआती कुछ वर्षों में आंखों का रंग नाटकीय रूप से बदल सकता है। कई शिशु नीली आंखों के साथ जन्मते हैं और फिर बचपन में उनकी आंखें कत्थई, हरी या भूरी हो जाती हैं। इस घटना का आनुवंशिकी के साथ कुछ ज़्यादा लेना-देना नहीं है, पर इससे यह समझने में अवश्य मदद मिलती है कि आंखों का भूरा रंग कहां से आता है।

आंखें भूरी क्यों होती हैं?

वह पिगमेंट युक्त संरचना जो आंख के अंदर पाई जाती है जो पुतली के चारों ओर होती है और इसी से आंखों को उनका रंग मिलता उसे आइरिस कहते हैं। आंख को मेलानिन नामक पिगमेंट से उसका रंग मिलता है और यही पिगमेंट त्वचा के रंग को भी प्रभावित करता है।

नीली आंखों के साथ जन्मने वाले शिशुओं के आइरिस में जन्म के समय मेलानिन की पूरी मात्रा मौजूद नहीं होती है। जीवन के शुरुआती कुछ वर्षों में, संभव है कि आइरिस में और मेलानिन एकत्र हो जाए, जिससे आंखों का रंग हरा, भूरा या कत्थई हो सकता है।

जिन शिशुओं की आंखें नीली से कत्थई हो जाती हैं दरअसल उनमें मेलानिन की अच्छी-ख़ासी मात्रा उत्पन्न हुई होती है। जिनकी आंखें हरी या भूरी ही रह जाती हैं उनमें इस पिगमेंट की थोड़ी कम मात्रा उत्पन्न हुई होती है।

काली आंखों के साथ जन्मे शिशुओं की आंखें आजीवन काली ही रहती हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि उनकी आंखों में प्राकृतिक रूप से मेलानिन अधिक होता है।

प्रकाश को सोखना और छितराना

आंखों के अंदर कोई भी नीला, हरा या भूरा पिगमेंट नहीं होता है। बात बस इतनी सी है कि आंखों में मेलानिन की अलग-अलग मात्रा होती है, और यह पिगमेंट गहरा कत्थई होता है।

तो फिर एक गहरे कत्थई पिगमेंट से आंखें नीली, हरी या भूरी कैसे हो सकती हैं? इसके लिए दो प्रक्रियाएं ज़िम्मेदार होती हैं:

  1. आइरिस में मौजूद मेलानिन आंख में आने वाले प्रकाश के अलग-अलग तरंगदैर्घ्यों को सोखता है।

  2. आइरिस प्रकाश को छितराता और परावर्तित करता है, और कुछ तरंगदैर्घ्य (यानी कुछ रंग) अन्य की तुलना में अधिक आसानी से छितरा जाते हैं।

यदि आंखों में मेलानिन की मात्रा अधिक हो तो वह आंख में प्रवेश करने वाले प्रकाश की अधिक मात्रा सोख लेता है, अतः आइरिस से प्रकाश की कम मात्रा छितराती है और परावर्तित होती है। नतीजतन ऐसी आंखें कत्थई दिखती हैं।

यदि आंखों में मेलानिन की मात्रा कम हो, तो आइरिस कम प्रकाश सोख पाता है और वह प्रकाश की अधिक मात्रा को छितराता और परावर्तित करता है। चूंकि छोटे तरंगदैर्घ्यों वाली (नीली और हरी) प्रकाश किरणें अपेक्षाकृत लंबे तरंगदैर्घ्यों वाली (लाल प्रकाश) प्रकाश किरणों की तुलना में अधिक आसानी से छितरा जाती हैं, अतः जिन आंखों में प्रकाश सोखने वाले मेलानिन की मात्रा कम होती है वे हरी या भूरी दिखती हैं और जिनमें यह मात्रा बहुत ही कम होती है वे आंखें नीली दिखती हैं।

साथ ही, आइरिस के अलग-अलग भागों में मेलानिन का वितरण असमान भी हो सकता है, जिससे भूरी आंखें पुतली के पास हल्की कत्थई और आइरिस के किनारे पर अधिक हरी दिखती हैं।

भूरी आंखें एक कलाकृति होती हैं

आंखों का भूरा रंग जटिल भी होता है और शानदार भी, क्योंकि इसकी विशिष्ट विशेषताएं कई अलग-अलग कारकों से तय होती हैं — इनमें आइरिस में मेलानिन की मात्रा और वितरण, आइरिस एवं पिगमेंट के अणुओं द्वारा प्रकाश के छितराने से रंग पर पड़ने वाला प्रभाव, और जहां हम हैं वहां के प्रकाश और हमारे कपड़ों व परिवेश के रंग से आंखों के नज़र आने वाले रंग पर पड़ने वाला प्रभाव शामिल हैं।

जिस प्रकार कोई कलाकार कोई मास्टरपीस बनाने के लिए अनेक बार अपनी कूची चलाता है, उसी प्रकार भूरी आंखों में अनेक घटकों की छटाएं मिल कर एक ऐसी अनूठी कलाकृति बनाती हैं जो हर भूरी आंख में दिखाई देती है।

यदि आप नज़र का चश्मा पहनते हैं, तो ऐसे लेंस चुनें जिन पर एंटी-रिफ़्लेक्टिव कोटिंग हो ताकि आपके चश्मे में से ध्यान भंग करने वाले परावर्तन ख़त्म किए जा सकें और दूसरे लोग आपकी भूरी आंखों की सुंदरता देख सकें।

अपनी आंखों को भूरी बनाएं

यदि आपकी आंखें प्राकृतिक रूप से भूरी नहीं हैं, पर आप हमेशा से चाहते हैं कि वे हों, तो आप रंगीन कॉन्टैक्ट लेंसों से अपनी यह इच्छा पूरी कर सकते हैं। बेशक, वे असल में आपकी आंखों का रंग नहीं बदलेंगे, बस उन्हें पहन कर आपकी आंखें भूरी दिखेंगी।

रंगीन कॉन्टैक्ट लेंस कई रंगों में उपलब्ध हैं, अतः आप भूरे रंग के विभिन्न शेड्स में से चयन कर सकते हैं। पर बात इतनी सी नहीं है कि आपने अपने पसंद के रंग वाला लेंस चुन लिया; कौनसे लेंस सबसे अच्छे दिखेंगे यह तय करने में आपकी आंखों के प्राकृतिक रंग की भी अपनी भूमिका होती है।

कॉन्टैक्ट लेंस खरीदने हैं? अपने पास का कोई आईवियर स्टोर ढूंढें.

यदि आपकी आंखें बहुत हल्के रंग की हैं, तो "एनहांसमेंट टिंट" वाले रंगीन कॉन्टैक्ट लेंस आपके लिए उपयुक्त हो सकते हैं। इन लेंसों में एक पाराभासी रंग होता है जो आपके प्राकृतिक रंग का कुछ अंश दिखने देता है — इससे, उदाहरण के लिए, आपकी हल्की नीली आंखें गहरी नीली बन सकती हैं। यदि आपकी आंखों का रंग पर्याप्त रूप से हल्का है, तो आप एनहांसमेंट टिंट की मदद से अपना मनचाहा भूरा रंग हासिल कर सकते हैं।

इस बात की अधिक संभावना है कि आपको अपनी आंखें भूरी बनाने के लिए अपारदर्शी टिंट वाले लेंस चाहिए होंगे। इन लेंसों को आपकी आंखों के प्राकृतिक रंग को आपके मनचाहे रंग से ढकने के लिए बनाया जाता है। यदि आपकी आंखें गहरी कत्थई हैं और आप उन्हें भूरी या कोई अन्य हल्की रंगत देना चाहते हैं तो ये लेंस अच्छे रहेंगे।

कोई भी नेत्र देखभाल पेशेवर आपको विभिन्न रंग दिखा सकता है और सही चयन करने में आपकी मदद कर सकता है।

याद रखें, कॉन्टैक्ट लेंस एक प्रेस्क्रिप्शन आइटम हैं, और यदि आप पहले से ही कॉन्टैक्ट लेंस नहीं पहनते हैं, तो आपको कॉन्टैक्ट लेंस लेने के लिए आंखों की जांच करवानी होगी और प्रेस्क्रिप्शन लिखवाना होगा — भले ही आपकी दृष्टि बिल्कुल ठीक हो और आपको नज़रों वाले लेंस की कोई ज़रूरत न हो।

McDonald, J.H. Myths of Human Genetics. Sparky House Publishing, 2011.

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Characterization of melanins in human irides and cultured uveal melanocytes from eyes of different colors. Experimental Eye Research. सितंबर 1998.

Eye color changes past early childhood: the Louisville Twin Study. JAMA Ophthalmology. मई 1997.

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